पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार होते है।
स्त्री विमर्श के युग मे पुरुषो की बात करना थोड़ा उल्टा सा है।लेकिन यह भी सच है,की सिरिष्टि और समाज मे पुरुष की भूमिका अत्यंतमहतव्पूर्ण मानी जाती है,पुरुष की घर मे स्थिति उस वट वृक्ष के समान होता है,जो मजबूती के समान खड़ा रहता है।यदि हवा के झोको से बचाने वाला यह वृक्ष किसी कारण मृत हो जाता है,तो उसके आसपास के छोटे-छोटे पौधे हवा के द्वारा उखाड़ के फेख दिए जाते है।उसी तरह से पुरुष पर पूरे परिवार की सुरक्षा टिकी होती है।जो पहले अपने परिवार के बारे मे सोचता है,फिर बाद मे खुद के बारे मे।परिवार व नौकरी के जिम्मेदारियो के बीच उनके अपने सपने अधूरे रह जाते है।उनमे भी पुरुष की पुरुष होने की पीड़ा,जैसे एक पुरुष की अपनी नौकरी,बच्चो की परवरिश और वृद्ध माता-पिता की आशाओ के बीच तालमेल बैठाना कितना मुश्किल होता है,अपनी योग्यता व क्षमता कम की नौकरी करने पर विवश होना और नकारात्मकता आने पर भी परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उसी नौकरी को करते रहना या बेरोजगारी के हालत मे परिवार व समाज की प्रताड़ना को झेलना पड़ता है।बचपन से सिखाया जाता है,कि तुम एक पुरुष हो और तुम रो नहीं सकते हो,उनकी एक मजबूत छवि बना दी जाती है।चलचित्र मे एक संवाद बड़ा प्रख्यात हुआ,कि “मर्द को दर्द नहीं होता” फ़िल्मी कथन जोश भरने के लिए अलग होता है,पर सच है कि मर्द को भी दर्द होता है।उसे भी निराशा और अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ता है,कभी- कभी मानसिक वेदना को न झेलने के कारण आत्महत्या भी करना पड़ता है।
घरेलू परिवेश मे उसे भी ज्यादा पीड़ा होती है,आज स्त्री भी आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए बाहर जाकर नौकरी करने लगी है, स्त्री जब कमाती है,तो उसमे अहम हो जाता है,जहाँ उसका अहंकार फिजूल खर्ची से पुरुषो को अवसाद झेलना पड़ता है।विवाह उपरान्त यदि पुरुष व स्त्री मे आपसी तालमेल न हुआ तो घर मे कलेश होता है तो सारा ठिकरा पुरुषो पर डाल दिया जाता है।स्त्री व ससुराल पक्ष पुरुषो को मानसिक प्रताड़ना व धमकी देते है,स्त्री उसे झूठे केस मे फसा देती है।जो कानून ने स्त्रीयों के साथ घरेलू हिंसा रोकने व सुरक्षा के लिए बनाये हुए है,वे उसी कानून का फायदा उठाकर पुरुषो व उनके परिवार के समस्त सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार, दहेज प्रथा आदि दोष आरोपित कर देती है,झूठे अरोपो मे फसाने के कारण कारण कई बार ये पुरुष व इनके माता-पिता भी आत्महत्या करने पर विवश हो जाते है।
वैसे तो अब न्यायालय व समाज के सामने सामने उजागर होने लगे है,न्यायधीश भी ऐसे आरोपों को भी गंभीरता व बारीकी से अवलोकन करने लगे है कि हर आरोप मे पुरुष ही गल्त नहीं होते है,पत्नी भी होती है। समाज मे अनेक ऐसे घरेलू व सामाजिक धटनाओ के कारण पुरुष भी सुरक्षित नहीं है,वे भी पीड़ित है,उनके साथ भी दुर्व्यवहार,हो रहा है।इन्हे भी आयोग की आवश्यकता है,तथा कानून मे परिवर्तन की जरुरत है।
Author: kanchan Thakur