चुंगलखोर खिड़की
एक लेखक के कमरे की हल्की रोशनी,जो शीशे की खिड़की मे ,अखबार से ढके होने के बावजूद ,रात के अँधेरे मे,अपनी उज्वलता का परिचय देती थी। क्योकि कही छोटा सा कोना छूट गया होगा। जो लेखक को अपनी लेखनी की व्यवस्तता के कारण ज्ञात ना था। और उस छोटे से चुंगलखोर कोने ने, पड़ोसी की जिज्ञासा को प्रबल कर दिया था। जिससे पड़ोसी के द्वारा लेखक के जीवन को नरक बना दिया। जिससे हर बार लेखक की कहानियो को अधूरा छोड़ने पर मजबूर कर देती थी। परन्तु जब पानी हद से पार हो गया ,तो लेखक ने सबसे पहले उस चुंगलखोर कोने को ढूढ़ निकला। और मुँह पर अखबार ठूंस कर सेलो टेप लगा दिया। और रहत की साँस लिया। अब संकल्प नया था । पर लेखक को लेकर अब पड़ोसी की जिज्ञासा बड़ी समस्या बन गयी ।