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आलोचना 

   आलोचना एक प्राचीन कला है| जो आदिकाल से चली आ रही है| आलोचना करना व सुनना भी एक कला है| आलोचनना करने मे आलोचक को प्रसन्न मूड़ होना चाहिए| फला की बेटी,फला का बेटा,फला का घर इत्यादि| जो वैज्ञानिको की सर्च को भी मात दिया होता है| और इसके साथ सुनने वालो मे कौतूहलता तो चूहे को भी पीछे छोड़ा होता है| यदि व्यक्ति आलोचना करना व सुनना नहीं आता है| तो वह व्यक्ति समाज मे बैठने लायक नहीं है|

     आलोचना मे भी महानता है| कभी-कभी इशारे इशारे मे बाते हो जाती है| और सामने वाला समझ भी जाता है| चाहे वे अनपढ़ ही क्यों न हो| इस तरह की कला में ज्यादा निपुरता महिलाओं में होता है| जो पुरुषो में कम होता है|

आलोचना सुनने वाला व्यक्ति भी 2 का 4 लगाकर बोलता व सुनता है| चाहे उसे अर्थ नहीं भी समझ आ रहा होता है| वह अर्थ का अनर्थ कर देता है|अब बात आती है| जिस व्यक्ति की आलोचना हो रही होती है| वे उस समय समाज का बड़ा प्रतिभावान व्यक्ति होता है| जो 2 या 8 ,10 लोगो के बीच में खालीपन को भर रहा होता है|

      अब ऐसा भी नहीं होता है| कि प्रतिभावान व्यक्ति तक बात न पहुँचे| उन्ही लोगो में से कोई हितेषी बनने क चक्कर में आकर बता भी जाता है| जिसे यह भी माना गया है|कि उड़ते-उड़ते खबर पहुँच ही जाती है| और प्रतिभावान व्यक्ति धैर्यवान नहीं हुआ तो बेचारा आत्महत्या कर लेगा| या जाकर मोहल्ले में जोर जोर से लड़ाई करेगा| यह बहुत विचित्र समस्या होती है| आप को यदि सामाजिक प्राणी बनना है| तो आप को आलोचना को सहन करना आना चाहिए| जो स्पेश मिशन चंद्रयान से बड़ी सफलता होती है|

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