अपनो की चोट का दर्द
एक सुनार था। उसकी दुकान के साथ ही एक लोहार की दुकान थी।
सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती।
और जब लोहार काम करता ,तो उसकी दुकान से कानो को फाड़ देने
वाली आवाज़ सुनाई देती। एक दिन ,एक सोने का एक कण छिटककर
लोहार की दुकान मे आ गिरा। वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के
साथ हुई। सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा ,भाई हम दोनों का
दुःख एक समान है। हम दोनों को एक ही समान आग मे तपाया जाता
है। और एक समान रूप के हथौड़े की चोट भी सहनी पड़ती है। पर मै ये
सब यातना चुपचाप सेहता हूँ। पर तुम बहुत चिल्लाते हो। क्यों ,भाई ?
लोहे के कण ने मन भारी करते हुए कहा तुम्हारा कहना सही है।दर्द तो
एक समान है। परन्तु मुझ पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा मेरा
सगा भाई है। परायो की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट अधिक पीड़ा
पहुँचती है।
Writer :kanchan Thakur